किसी के दबाये कब दबी है…….प्रतिभा
कलि ने कहा तुम खिलना छोड़ दो ,
न फूल बनो और ना ही अपनी खुसबू से ,
सारे संसार को महकाओ , वह न मानी ,
खिली खूब खिली !
फूल बनकर रही चारो ओरअपनी खुशबू से ,
संसार को महका दिया !
आगे बड़ा देखा एक छोटी सी नदी बह रही थी उसे रोकने का प्रयास किया ,
विफल हो गया देखता हु आगे बढ़कर ,
उसने एक विशाल सरिता का रूप धारण कर लिया है ,
अब तोह वह तीव्र गति सी बह रहा है !
ऊपर मुख किया तो देखा कि सूर्य को रोकने कि ताक़त मुझमे नहीं ,
उसका प्रकाश काम करने कि हिम्मत मुझमे नहीं ,
उसी प्रकार एक प्रतिभावना व्यक्ति की प्रतिभा चिप सकती है |
दबाई नहीं जा सकती,उसकी गति रोकी नहीं जा सकती ,
उसकी तेजस्विता काम नहीं की जा सकती वह कही न कही दिखाई देती है उसकी योगिता दिखाई देती है !
हेम चंद्र जोशी कपकोट