केरल में वामपंथी हिंसा के विरोध में संघ का प्रदर्शन

केरल में वामपंथी विचारधारा से शिक्षित लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे संबंध रखने वाले नागरिकों व कार्यकर्ताओं की जिस क्रूरता से हत्या कर रहे हैं, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। इस जंगलराज में महिला और मासूम बच्चे भी सुरक्षित नहीं हैं। चिंता की बात यह भी है कि इन घटनाओं पर तथाकथित बुद्धिजीवी जगत में अजीब-सी खामोशी पसरी हुई है। इतिहास में ज्ञात तथ्य है कि जहां भी कम्युनिस्ट शासन रहा है, वहां विरोधी विचार को खत्म करने के लिए मार्क्सवादी कार्यकर्ताओं ने सड़कों को खून से रंग दिया है। वामपंथी विचार के मूल में तानाशाही और हिंसा है। वामपंथी विचार को थोपने के लिए अन्य विचार के लोगों की राजनीतिक हत्याएं करने में कम्युनिस्ट कुख्यात हैं। भारत में पश्चिम बंगाल इस प्रवृत्ति का गवाह है और अब केरल में यह दिख रही है। केरल में वामपंथी हिंसा को शासन संरक्षण प्राप्त है। अब तक की घटनाओं में स्पष्ट तौर पर माकपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं की संलिप्तता उजागर हुई है। लेकिन राज्य सरकार ने हिंसा को रोकने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाए हैं, बल्कि घटनाओं की लीपापोती करने का प्रयास जरूर किया है। इस हिंसा के आहत व केरल सरकार को उसके संवैधानिक दायित्वों का प्रबोध कराने के लिए रविवार को मथुरा में विशाल धरने में केरल व्याप्त वामपंथी विचार के तानाशाहों की हिंसा और इसे रोकने के प्रयासों पर बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे। हमारी संस्कृति मानवता, एकता, आत्मीयता व प्रकृतिप्रिय रही है। राष्ट्र की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने के लिए सदैव प्रयास जारी रहने चाहिए। नागरिकों, बुद्धिजीवियों की धरना में ​बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्शाती है कि भारतीय सभ्य समाज में हिंसा को मान्यता कभी नहीं मिलेगी। हम आशा करते हैं कि केरल की सरकार राष्ट्र के निमार्ण के मार्ग पर चलकर राज्य में व्याप्त पशुता को समाप्त कर इस हिंसा के दोषियों पर विधिक कार्रवाही कर संविधान की मर्यादा को बनाए रखने का प्रयास करेगी।

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