बल्लभाचार्य के बिना आज भी भारतीय दर्शन अधूरा
भारत के चार प्रमुख संप्रदायों में पुष्टिमार्ग संप्रदाय प्रमुख है। आज भी कृष्णभक्ति संप्रदायों में बल्लभ संप्रदाय का नाम सर्वोपरि माना जाता है। क्योंकि बल्लभ नहीं होते तो शायद यह संसार सूरदास जैसे महान कवियों की वाणी और उसके संगीत से अनिभिज्ञ ही रहते। आज रविवार को जगदगुरू श्रीमद् बल्लभाचार्य जी का 540 वा प्रकटोत्सव है। संवत् 1535 वैशाख कृष्ण एकादशी को काशी के पास जन्में और ब्रजमंडल को अपनी साधना स्थली बनाने वाले श्रीबल्लभ ने विश्व को पुष्टिमार्ग का प्रबोध कराया।
श्रीमद् बल्लभाचार्य जी 84 लाख योनी में भटकते जीवों के उद्धारार्थ 84 वैष्णव ग्रन्थ, 84 बैठके और 84 शब्दों का ब्रह्ममहामंत्र दिया। उनके ग्रंथों में टीका भाष्य निबंध, शिक्षा और साहित्य आदि सभी कुछ है। इनमें गायत्री भाष्य, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा, तत्त्वार्थदीप निबन्ध, शास्त्रार्थ प्रकरण, सर्वनिर्णय प्रकरण, भगवातार्थ निर्णय, सुबोधिनी और षोडश ग्रंथ प्रमुख हैं। उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त महाप्रभु श्री बल्लभाचार्य ने अन्य अनेक ग्रन्थों और स्तोत्रों की रचना की है। जिनमें पंचश्लोकी, शिक्षाश्लोक, त्रिविधनामावली, भगवत्पीठिका आदि ग्रन्थ तथा मधुराष्टक, परिवृढाष्टक, गिरिराजधार्याष्टक आदि स्तोत्र प्रसिद्ध है |
प्रदीप कुमार
ब्रज प्रान्त प्रचार प्रमुख