विश्व को दिशा दिखाने वाला आदर्श स्थापित करना भारत का दायित्व – डॉ. मोहन भागवत जी
धर्मजागरण न्यास के नवनिर्मित कार्यालय का लोकार्पण
नागपुर, ६ अगस्त।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि दुनिया के लोग कहते हैं कि हम अलग हैं, इसलिए हमें एक होना होगा। हालाँकि, हमारा धर्म हमें विविधता को स्वीकार करना सिखाता है। हिन्दुत्व हमें मानव धर्म का पालन करना सिखाता है। यद्यपि सभी का मार्ग अलग-अलग है, लेकिन गंतव्य एक ही है। इसलिए हमें दूसरों का मार्ग बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आपका मार्ग कौन सा है, इस बात पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। धर्म जागरण होने पर ही धर्म का आचरण करने वाला समूह अस्तित्व में रहेगा। यह केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं रहेगा। विश्व को दिशा दिखाए, ऐसा आदर्श स्थापित करना, यह भारत की जिम्मेदारी है।
सरसंघचालक जी बुधवार को नागपुर के भगवान नगर स्थित धर्म जागरण न्यास के नवनिर्मित कार्यालय के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे। धनश्री सभागार में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, प्रांत संघचालक दीपक जी तामशेट्टीवार, सह प्रांत संघचालक श्रीधर जी गाडगे, नागपुर महानगर संघचालक राजेश जी लोया, धर्मजागरण गतिविधि अखिल भारतीय संयोजक शरद जी ढोले और धर्मजागरण न्यास के अध्यक्ष विजयजी कैथे उपस्थित रहे।
सरसंघचालक जी ने कहा कि सनातन धर्म आत्मीयता और विविधता को पूर्ण रूप से स्वीकार करना सिखाता है। भारत में विविधता होते हुए भी अंततः सभी लोग एक ही हैं। सभी विविधताओं को स्वीकार करना, यही सच्चा धर्म है। धर्म का कार्य केवल ईश्वर के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी है। इसलिए यदि धर्म सही है, तो समाज में संतुलन और शांति संभव है। धर्म का कोई भी कार्य पवित्र होता है। जिसे हम धर्म कहते हैं, वह सत्य है। हमारे देश में विविधता दिखाई देती है, लेकिन यह एकता का आविष्कार है। धर्म जागरण के माध्यम से शुचिता, सत्य, तप और करुणा जागृत होती है। अतः इसके लिए प्रयास करने होंगे।
धर्म रक्षा के लिए बलिदान देने वाले आदर्श
धर्म यानि कर्तव्य, यह अपना विचार है। इसी से राज धर्म, प्रजा धर्म, पितृ धर्म जैसी बातें सामने आईं। कई लोगों के जीवन में कठिन परिस्थितियाँ आती हैं और उनका साहस टूट जाता है। इस कारण वे सही मार्ग छोड़ देते हैं। लेकिन पुरुषार्थी लोग बिना थके, बिना रुके अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपने धर्म के प्रति अडिग रहते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में संकट आए, लेकिन उन्होंने बल और बुद्धि से रास्ता निकाला। व्यक्ति के मन में धर्म के प्रति निष्ठा दृढ़ होनी चाहिए। धर्म के लिए कई लोगों ने बलिदान दिया है। उन्हें यातनाएँ दी गईं, लेकिन उन्होंने धर्म त्याग नहीं किया। ऐसे लोग हमारे सामने आदर्श हैं।
सुनील जी भुलगांवकर ने सूत्र संचालन किया। इस अवसर पर सरसंघचालक जी ने धीरज महाकालकर, विवेक देशकर और चंदन सिंह का सम्मान किया।